बुधवार, जुलाई 13, 2016

सजन रे झूठ मत बोलो

अनुभव बताता है कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का गाना गाने वाले ही असली असहिष्णु हैं। देश या धर्म से संबंधित विवाद खड़े करने हों या इनकी अस्मिता पर प्रहार करना हो, लोक मत को काऊंटर करने के लिये अगर-मगर लगाकर और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का नाम लेकर यह लॉबी अपना कार्य करती रहती है। इसका प्रतिदान इन्हें किस रुप में मिलता है, यह अनुमान लगाना बहुत कठिन नहीं। फ़ेलोशिप, विभिन्न अवार्ड, देशी और विदेशी कांफ़्रेंसों में भाग लेने के और रिटायरमेंट के बाद मानवाधिकार या ऐसे ही किसी अन्य सफ़ेद हाथी पर सवारी करने के अवसर किसी से छुपे नहीं हैं। वहीं ये काम किनके इशारे पर और किन्हें लाभ पहुँचाने के लिये होते हैं, यह समझना भी बहुत मुश्किल नहीं है।
कश्मीर के एक आतंकवादी के हथियार उठाये हुये और भड़काऊ भाषण देते वीडियो उसीके सोशल मीडिया एकाऊंट पर उपलब्ध हैं। उसके स्तर का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि मुठभेड़ में सेना द्वारा इस आतंकवादी को मार दिये जाने के बाद कई दिन तक घाटी बंद और कर्फ़्यू लगा है, हिंसा हुई है और पाकिस्तान के प्रधानमंत्री का अधिकृत संदेश जारी हुआ कि बुरहान वानी के मरने से उन्हें सदमा पहुँचा है। इस प्रकरण से सबक लेने की बात कहते हुये हमारे ही देश के  सरकारी विश्वविद्यालय में एक हिन्दी के प्रोफ़ेसर साहब उसे हर तरह से क्लीनचिट दे रहे हैं। यह तो हुई उनकी अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और जब उन्हें बेशर्मी से झूठ बोलने की बात कही जाये तो वो टिप्पणी डिलीट हो जाती है।
धर्म और भगवान को मानना कामरेडों के लिये वर्जित होता है इसलिये ’खुदा के पास जाना है’ की याद दिलाना तो नाहक ही होगा लेकिन एक अंतरात्मा तो इनकी भी होती होगी। वो भी ऐसी बात कहने से नहीं कचोटती तो यकीन मानो, अंतरात्मा जरूर बेच खाई होगी।


 

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